Yug Purush

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8TH SEMESTER ! भाग- 124( Bloody End of 3rd Semester- 4)

क्या मैने ऐश  के साथ पार्किंग मे जो किया वो सही था...?? कहीं मैने आज अपने हाथो ही अपने अरमानो का तो गला नही घोंट डाला..?? .क्यूंकी यदि ऐश  की जगह कोई और भी होता,यहाँ तक मैं भी होता...तो अपने प्यार को चोट पहुचने वाले से नफ़रत करता... और ईशा ने भी आज वही किया,...ग़लत तो मैं ही था जो बार-बार उसके सामने खड़ा हो जा रहा था. उससे बात करने की मेरी ज़िद ने शायद उसे,मुझपर और भी ज़्यादा गुस्सा दिला दिया और फिर पार्किंग मे उसे धमकी देकर आना.... That was really my fault...मुझे ऐसा नही करना चाहिए था.. किसी भी हाल मे नही करना चाहिए था...

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लेकिन उसी वक़्त   मेरे दूसरे version से भी एक आवाज़ आई कि" that was not my fault... यदि ऐश  की जगह पर और कोई होता तो वो बेशक वही करता..जो ऐश  ने किया,आइ अग्री.... लेकिन यदि मेरी जगह पर भी कोई और होता तो वो भी वही करता जो मैने किया था... अरुण मेरे भाई जैसा है और यदि उसे कोई मारने आए तो क्या मैं छिप कर सिर्फ़ इसलिए बैठा रहूं क्यूंकी मेरे दोस्त को मारने आ रहा वो लड़का मेरे प्यार का प्यार है...??? बिल्कुल नही, मैने जो किया बिल्कुल सही किया.. जिसको जो समझना है समझे, जिसे नफ़रत करनी है वो करे, अपुन को ज़िंदगी गुज़ारने के लिए सिर्फ़ दोस्त और दारू की बोतल ही काफ़ी है.... दिल ना हो तब भी चलेगा....


मेरे अंदर इस समय दो अरमान मौज़ूद थे और दोनो अपने-अपने विचार दे रहे थे...एक सही था और एक ग़लत ,ये तो मैं जानता था पर मुद्दा ये था कि दोनों मे से  सही कौन है ? और कौन गलत... मैं ये डिसाइड नही कर पा रहा था.मेरा मन कर रहा था कि मैं सड़क के किनारे लगे पेड़ो पर अपना सर दे मारू या फिर अपने बाल नोच डालु...क्यूंकी दूसरो से तो बचा जा सकता है लेकिन खुद से बचने की कोई राह नही होती, इस वक़्त मेरे अंदर दो अरमान थे..एक वो अरमान था जो ऐश  से बेहिसाब मोहब्बत करता था तो दूसरा अरमान ,अरुण को अपना ख़ासम खास यार मानता था. उन दोनो अरमान की लड़ाई से मेरे अंदर इस समय एक तूफान उठा हुआ था कि एक स्कूटी मेरे सामने से होकर गुज़री और थोड़ी दूर जाकर रुक गयी....



"अब ये कौन है और मैने इसका क्या बिगाड़ा है...जो मुझे घूर रही है..."अपने चेहरे पर स्कार्फ बाँधे उस लड़की को अपनी तरफ देखता हुआ पाकर मैने सोचा....

मैने अपने अगल-बगल ,आगे-पीछे भी चेक किया की वहाँ मेरे सिवा और कोई तो नही,जिसे ये स्कार्फ वाली आइटम देख रही है...लेकिन वहाँ कोई नही था.. हॉस्टल  को हाइवे से जोड़ने वाली सड़क के अंतिम छोर पर मैं सिर्फ़ अकेला खड़ा था जिसका सॉफ मतलब था कि वो स्कूटी वाली लड़की वहाँ खड़ी होकर मुझे ही देख रही है....

"अरमान...तुम यहाँ"अपने चेहरे पर स्कार्फ लपेटे हुए ही उस लड़की ने मुझसे कहा...


स्कार्फ बँधे हुए होने के कारण उसकी आवाज़ सॉफ नही आई ,लेकिन मैं इतना तो समझ गया था कि ये लड़की कौन है...आक्च्युयली मैं आज इतने दिनो बाद उसे देख कर थोड़ा शॉक्ड हो गया था और साथ ही उसे देखकर एक मुस्कान मेरे होंठो पर आ गयी क्यूंकि यदि अब वो मुझे देखकर रुकी है तो देकर ही जायेगी.
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"दीपिका मैम , काफ़ी दिनो बाद देखा... कैसी है आप "

" गीली हूँ....."उसने स्कूटी का डायरेक्शन  चेंज किया और मेरी तरफ आने लगी. मेरे सामने स्कूटी रोकने के बाद दीपिका मैम  ने अपना स्कार्फ हटाया और मुझसे पूछी की मैं कहाँ जा रहा हूँ....

"कुछ  काम है घर मे, इसलिए घर जा रहा हूँ..."

"गौतम के बारे मे सुना मैने..."

"हां,मैने भी सुना...पता नही उसे किसने मारा,उस वक़्त मैं घर पर था..."


दीपिका मैम  से मैने झूठ बोला ,क्यूंकी मैं नही चाहता था कि उसे ये मालूम हो कि मुझे बचाने के लिए मेरे वॉर्डन और प्रिन्सिपल सर ने पुलिस  से झूठ बोला था...सबको यही मालूम था कि जब गौतम की लड़ाई हुई तब मैं हॉस्टल  मे नही बल्कि अपने घर मे था....


"तो,कितने बजे की ट्रेन है..."

"6'0 Clock."

"एक काम करो तुम मेरे साथ चलो..मेरा रूम रेलवे स्टेशन के आगे ही है तो तुम्हे वहाँ छोड़ते हुए चलूंगी..."कुछ  देर सोचने के बाद दीपिका मैम  बोली...

"ये सही रहेगा थैंक्स ...."बोलते हुए मैं दीपिका मैम की स्कूटी की तरफ बढ़ा....

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आज बहुत दिनो के बाद मैं दीपिका मैम  से मिला था इसलिए स्कूटी मे उनके पीछे बैठने के बाद जब मेरा अंग उनके अंग से टकराया, रगड़ खाया...तो मै मचल उठा. मैं जान बुचकर जितना आगे हो सके,उतना आगे खिसक कर दीपिका मैम से सट कर बैठा हुआ था ....साला इतनी बुरी कंडीशन मे फँसे होने के बावजूद ठरक पन मेरे अंदर से नही गयी थी.


दीपिका मैम  की एक खास आदत जो मुझे हमेशा से उसकी तरफ आकर्षित करती थी और वो थी उनके पर्फ्यूम की महक...जो इस वक़्त सीधे मेरे रोम-रोम मे एक हॉट लड़की के पास होने का अहसास करा रही थी. मैं थोड़ा और आगे खिसक कर दीपिका मैम  से अब पूरी तरह चिपक गया और अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया ...मेरी इस हरकत पर दीपिका मैम  कुछ  नही बोली और चुप चॅप स्कूटी चलाती रही. इस दौरान मैने पूरा मज़ा लिया और कई  बार पीछे से उसके गर्दन को किस भी किया.... 


"मैम..मेरे पास एक आईडिया है... यदि मै घर ना जाकर कुछ दिन आपके यहाँ ही रहू तो...?? आपका गुलाम बनकर रहूँगा कसम से.. जो बोलोगी, जब भी बोलोगी, जैसे भी बोलोगी... मै वैसे ही करूँगा आपके साथ... आपकी हवस भी थोड़ी बहुत मिट जाया करेंगी..."

"सिगरेट पियोगे..."स्कूटी को धीमा करते हुए दीपिका मैम  ने मुझसे पुछा...

"क्याआ...क्या....."

"मैने पुछा सिगरेट पियोगे या नही..."अबकी बार उसने स्कूटी रोक कर पुछा...

"मैं सिगरेट, सिर्फ़ दारू के साथ लेता हूँ..."

"और मैं चाय के साथ.."बोलते हुए वो नीचे उतर गयी और पास ही बने एक चाय वाले के पास जाकर दो चाय का ऑर्डर दिया...

"ये चाय-वाय रहने दो..."

"ओके..."उस चाय वाले की तरफ देखकर वो बोली"भैया एक लाइट देना और एक चाय..."
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दीपिका मैम  लगभग 5 मिनिट तक सिगरेट की कश मारती रही और मैं सदमे मे था.  दीपिका मैम  को अपनी आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था....थोड़ी देर बाद जब उसकी सिगरेट और चाय ख़तम हो गयी तो उसने एक और चाय विथ सिगरेट का ऑर्डर दिया....

"इसकी तो...एक और राउंड मार रही है"

"अरमान...एक काम करना..."सिगरेट के कश मारते हुए उसने मुझे अपने करीब आने के लिए कहा

"बोलो..."

"वो सामने...मेडिकल स्टोर दिख रहा है ना..."उसने सड़क के दूसरी तरफ इशारा करते हुए मुझसे पुछा...

"सब समझ गया...बच्चा गिराने की गोलिया लानी होगी,राइट.. वैसे किसका बच्चा है आपके पेट मे..?? कही मेरा तो नहीं..?"

"क्या खत्म आदमी हो यार तुम.. बेशर्मी की भी हद होती है कोई... तुम्हारी सारी बेशर्मी निकाल दूंगी आज. पर फिलहाल जाके जाके सामने वाले मेडिकल स्टोर से प्रोटेक्शन ले आओ ताकि मुझे अबॉर्षन ना करना पड़े "

दीपिका के द्वारा मुझे प्रोटेक्शन लाने के लिए कहने से मैं समझ गया कि वो आज रात मेरे साथ कूची-कूची करने के मूड मे है लेकिन 6 बजे मेरी ट्रेन थी इसलिए मैं चाहकर भी उसके साथ नही रह सकता था और ना ही उन्होंने मुझसे ये कहा था कि  मैं कुछ दिन उनके साथ उनके फ्लैट पर रुक सकता हूँ....इसलिए मैने थोड़ा शरमाते हुए कहा...

"मैम , शायद आप भूल रही है मेरी 6 बजे की ट्रेन है "


"ओये..किस भ्रम मे जी रहा है, मैं तेरे साथ नही बल्कि किसी और के साथ पलंग तोड़ने वाली हूँ...जा जाकर जो बोली, वो लेकर आ और सीधा एक पैकेट  लेकर आना ,रोज -रोज इस चीज के लिए दुकान जाना मुझे अच्छा नही लगता..."

"साली, कुतिया "बड़बड़ाते हुए मैं प्रोटेक्शन का एक पूरा पैकेट  लेने मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया....

किसी मेडिकल स्टोर मे प्रोटेक्शन खरीदने के लिए जाने वाले सभी इंसान मेरे ख़याल से दो तरह के होते है...एक वो जो एक दम बिंदास बेझिझक होकर ले आते है और एक वो जो खरीदते वक़्त थोड़ा शरमाते है...

मैं खुद को बिंदास बनाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहा था और जो लाइन मुझे मेडिकल स्टोर वाले से कहनी थी उसकी मैने कई बार प्रैक्टिस  भी कर ली थी...लेकिन ना जाने क्यूँ मेडिकल स्टोर के पास आकर मैं शरमाने लगा, मुझे उस मेडिकल स्टोर वाले से protection मांगने मे झिझक महसूस हो रही थी... ऐसी झिझक पहली बार किसी मेडिकल स्टोर से प्रोटेक्शन खरीदने वाले लड़के के अंदर आना बड़ी नॉर्मल बात है लेकिन ये झिझक तब और बढ़ जाती है जब आप ,जहाँ पहली बार ये खरीदने जा रहे हो ,वहाँ अचानक से भीड़ बढ़ जाए. उन लोगो के बीच मुझे प्रोटेक्शन माँगने मे शरम आ रही थी लेकिन मैने खुद को मज़बूत किया और अपनी लाइन्स तीन-चार बार रिवाइज़ करके उस मेडिकल वाले की तरफ देख कर बोला...


"भैया, प्रोटेक्शन देना तो... "

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